Saturday, July 4, 2015

ग़ज़ल 

४ दे यार और 
दे यारा  और भी दे गम मुझे सहनेकेलिये 
काफी नहीं हैं लहू दिलका  गममे तेरे बहनेकेलिये १

दिल  वो मुकाम हैं जहाँ  हर कोई  भटका  अटका 
बादमें  मिलते हैं बहोत मकान रह्नेकेलिये २

बहोत कुछ गिराना होगा श्रीधर  मोहब्बतकेलिये 
सिर्फ दिमाग काफी नहीं तेरा ढहनेकेलिये ३ 

बहोत कुछ भेंज दिया ताकि वो इश्कको समझे 
लाशतक बची नहीं हैं उन्हें कुछ कहनेकेलिये ४ 

इश्क़ मेरा समझ न आया न आया ना सही 
जुनूनमें दिया डायमंड तेरे काम आया गह्नेकेलिये ५ 

No comments: