Monday, October 10, 2016

प्रवीण दवणे कविता महाजनांच्या पासंगालाही पुरत नाहीत  

Monday, October 3, 2016

ओ पी नय्यर मेरे सबसे फेवरिट संगीतकार!  मैंने मराठीमें उनपे एक कविताभी लिखी थी जो मेरे कवितासंग्रह स्त्रीवाहिनीमे प्रकाशितभी हो चूँकी हैं |  ये भी सोचा था कि मरनेसे पहले लाइफमें कभी ना कभी उन्हें कुछ ना कुछ अर्पित करके ट्रिब्यूट दूंगा | मगर लाइफमे कभी ये नहीं सोचा था कि संगीतकार बनके ट्रिब्यूट दूंगा  | कल एक गाना एज अ ट्रिब्यूट रेकॉर्ड करने जा रहा हूँ | ओ पी जी आपकी यादमे आपकी प्रतिभाको एक कड़क सैल्यूट !

Saturday, October 1, 2016

मी यूद्धविरोधी आहे पण संरक्षणासाठी कधी कधी ते करावे लागते ह्याला पर्याय नसतो ही प्रतिकारवाई आवश्यक होती सैन्याचे अभिनंदन
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तुम्ही अस्सल आहात त्यामुळे लिहीत रहाल . लघवी लागते तसं आहे हो हे. पर्याय रहातच नाही . मेंदूच्या चड्डीत किती काळ ओल करणार . शेवटी चड्डी काढून कागदावर वा  वेबपेजवर .
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